नही मिलती है अब
वर्तमान के हस्ताक्षर में
जो खो गई थी
आँगन से दहलीज के बीच
पड़ी है कही वो
उल्लूओ की आवाज से
होती और डरावनी
स्याह रातों के बीच
वक्त के टिक टिक पर
नाचती रूह में, उसके
तूमने रौशनी बना डाली जिस्म को
दूधिया पानी में
और हम
रुह तलाशते रहे दिन के उजाले में
मासूम उँगलियों में
कई जख्म गहरे है
कुछ इस तरह स्पर्श ने धोखा खाया है
पत्थरो की रस्म अदायगी में
घायल होते रहे
उम्र के कैद खाने में
बुत बड़ी सख्त बनी
अश्क तो नमकीन ही था
और डूबता दोनों जहान रहा
कवितायें भी ना
जन्म लेती कही और हैं
पढ़ी कही और जाती हैं !
वर्तमान के हस्ताक्षर में
जो खो गई थी
आँगन से दहलीज के बीच
पड़ी है कही वो
उल्लूओ की आवाज से
होती और डरावनी
स्याह रातों के बीच
वक्त के टिक टिक पर
नाचती रूह में, उसके
कई मौसम उदास बैठे है
जिस्म की कफ़स में
कई युग बीते
जिस्म की कफ़स में
कई युग बीते
दूधिया पानी में
और हम
रुह तलाशते रहे दिन के उजाले में
मासूम उँगलियों में
कई जख्म गहरे है
कुछ इस तरह स्पर्श ने धोखा खाया है
पत्थरो की रस्म अदायगी में
घायल होते रहे
उम्र के कैद खाने में
बुत बड़ी सख्त बनी
अश्क तो नमकीन ही था
और डूबता दोनों जहान रहा
कवितायें भी ना
जन्म लेती कही और हैं
पढ़ी कही और जाती हैं !
कवितायें भी ना
ReplyDeleteजन्म लेती कही और हैं
पढ़ी कही और जाती
मनोभावनाओं की सुन्दर अभिव्यक्ति.
बेहद बेहतरीन रचना ..वाह कितनी बारिक नजर और अहसास को आपने शब्दों का जामा पहनाया है... उम्दा
ReplyDeleteस्पर्श ने धोखा खाया ?
ReplyDeleteएक तरह से हर अनुभूति केवल भ्रम है । और हम प्रतिक्षण केवल धोखा ही खा रहे हैं।