आडी-तिरछी लकीरें

किताबों में
बेहिसाब आडी-तिरछी लकीरें है

जवाब
अक्षरों के हिस्से में नहीं आती है

सुना है
कलम को उकेरता कोई कलाकार है

साफ़ सफ़ेद
किताबों को पलटता कोई तो है

किताबें जगह भी छेकतीं है
और स्याही पन्नों पर फैलती जाती है

सवाल शब्दों के
एक ठीगने से व्यक्ति के चेहरे पर उगता है

बिना हाथ के
सब के सब आकाश की तरफ देखते है

उम्मीद
डबडबायी आँखों से छलकती है !

1 comment:

  1. प्रभावी ...
    उम्मीद फॉर भी रहती तो है ...

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