बारिश नहीं बरसेगी
रातें नहीं तरसेंगी
नींद अपने स्वपन में उतरेगी
उम्मीद
किसी डाल की चिड़ियाँ नहीं
जो फुर्र से उड़ जाए
एक पल या दो पल बैठकर
रोकना है तो रोक लो
अनंत असंख्य जघन्य
नुकीले कीलों को गड़ने से
दीवारों में कैद साँसें
अब बगावती है
टूट जायेंगी दीवारे
एक अदद खिड़की के लिए
मंजिल
अपना रास्ता
आखिर तलाश ही लेती है !
रातें नहीं तरसेंगी
नींद अपने स्वपन में उतरेगी
उम्मीद
किसी डाल की चिड़ियाँ नहीं
जो फुर्र से उड़ जाए
एक पल या दो पल बैठकर
रोकना है तो रोक लो
अनंत असंख्य जघन्य
नुकीले कीलों को गड़ने से
दीवारों में कैद साँसें
अब बगावती है
टूट जायेंगी दीवारे
एक अदद खिड़की के लिए
मंजिल
अपना रास्ता
आखिर तलाश ही लेती है !
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (11-02-2015) को चर्चा मंच 1886 पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
मंजिल
ReplyDeleteअपना रास्ता
आखिर तलाश ही लेती है !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteप्रशंसनीय
ReplyDeleteबहुत ही शानदार प्रस्तुति।
ReplyDeleteखूबसूरत!
ReplyDeleteपानी भी तो पाहता जाता है जहां राह मिले ... लाजवाब प्रस्तुति ...
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