त्रिकोण है कोई
धटनाओ के अंतराल के बीच
एक कोने का ओरछोर मिले
और दूसरे कोने को समझ पाते
इससे पहले
तीसरे कोने पर कोई दर्द
टंगा मिलता
मजबूरी यह थी कि
एक कोने से दूसरे कोने तक
हम सीधे सीधे ही जा सकते थे
चलने की चाल चाहे जो भी अख्तियार करते
पर सीधे सीधे चलकर ही
दूसरे कोने तक पहुँचना संभव था
तीसरे कोने तक पहुँचने पर
वक्त हमें माफ़ नहीं करता था
और इसतरह
हम धरासायी होते रहे
तेरे महफ़िल में
और तूने आवाज़ तक ना सुनी !
धटनाओ के अंतराल के बीच
एक कोने का ओरछोर मिले
और दूसरे कोने को समझ पाते
इससे पहले
तीसरे कोने पर कोई दर्द
टंगा मिलता
मजबूरी यह थी कि
एक कोने से दूसरे कोने तक
हम सीधे सीधे ही जा सकते थे
चलने की चाल चाहे जो भी अख्तियार करते
पर सीधे सीधे चलकर ही
दूसरे कोने तक पहुँचना संभव था
तीसरे कोने तक पहुँचने पर
वक्त हमें माफ़ नहीं करता था
और इसतरह
हम धरासायी होते रहे
तेरे महफ़िल में
और तूने आवाज़ तक ना सुनी !
कितना सुन्दर लिखती हो..वाह!! अनेक शुभकामनायें..
ReplyDeleteशुक्रिया सर !
Deleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट को शनिवार, २३ मई, २०१५ की बुलेटिन - "दी रिटर्न ऑफ़ ब्लॉग बुलेटिन" में स्थान दिया गया है। कृपया बुलेटिन पर पधार कर अपनी टिप्पणी प्रदान करें। सादर....आभार और धन्यवाद।
ReplyDeleteवाह !
ReplyDeletenicely expressed
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