बडे सकून और अतिप्रिय थे
गर्मी के छुट्टीवाले दिन
तालाब था गांव के किनारे
दादा ने बनवाया था
ढेंर सारे पेंड थे
बेहद शांत और मनोरम जगह था
जहां हम गर्मी की छुट्टियां बिताते थे
खेतों की क्यारियों पर चलना
और नहरों के पानी में
पैर को डुबोना और
कुर्बान होना हरियाली देखकर
बहुत बहुत बहुत सफ़ेद थे
उन दिनो हंस
अब तक जिन्दा है यह एहसास में
तालाब के आस पास इतनी शांती थी
तालाब के आस पास इतनी शांती थी
कि मानो आज भी यह सोचकर
कान बज उठते है
बचपन में ऐसी जगहें
जहां एकांत होती थी
उन दिनों भगवान के अक्स मन में उभर आते थे
और तब हम समस्त भय से बाहर होते
घण्टों हम अकेले होकर भी
अकेले नही होते थे
क्योंकि हम इतने लायक थे कि पेड-पौधो पंछियों
सभी से बातें कर सकते थे
सुन्दर और अतिप्रिय जो दृश्य था
दो हंसो का तालाब मे घण्टों मौन मे तैरना
उन्हें देखते वक्त कैसे समय निकल जाता था कि
बस पुछो मत
उन दिनों हंस बहुत हुआ करते थे
और सकून भी भर भरके
लोग भी भूखे नही हुआ करते थे
बात ऐसे दिनों की है
बात ऐसे दिनों की है
जब पर्दा तो था
पर, आंखो मे पानी भी था
पर, आंखो मे पानी भी था
महानगर में सब कुछ है पर
वह तालाब नही दिखता जिसमें हंस तैर सके
और हम अपने बच्चों को दिखा सके
उसी सकून और शांती से
हंस ओझल है अब
क्या गांव और क्या शहर
भीड से दूर
उस तालाब की तालाश आज भी है
इस ख्वाहिश के साथ कि
उसी शांति और सकून से
उसी शांति और सकून से
तुम्हें हंसो के साथ दिखाऊ !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteआपको स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई!
Shukriya aur aabhar aapka aur aapki vi Sha antrata divas ki badhai!
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