तारों पर
खामोशी तैरती
और चाँद अपनी तन्हाई में
जलता
धीरे धीरे
तम के आगोश में
बेपनाह गहरापन
फ़िर भी
रात जवाँ होती
धीरे धीरे
रात के गुलाबी जिस्म पर
टपकता खामोशियो के
कुंवारे लम्स
तन्हाई बयाँ करती
धीरे धीरे
गुलाबी पन्नो के
नई दरख्त पर
एहसास लिपटें
धीरे धीरे
चल देते साथ गर
शब्द शब्द
तन्हाई खाक होती
धीरे धीरे !
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (06-08-2018) को "वन्दना स्वीकार कर लो शारदे माता हमारी" (चर्चा अंक-3054) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
shukriya aur aabhaar !
Deleteजय मां हाटेशवरी...
ReplyDeleteअनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 07/08/2018
को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।
shukriya aur aabhaar aapka !
Deleteतम के आगोश में
ReplyDeleteबेपनाह गहरापन
फ़िर भी
रात जवाँ होता
धीरे धीरे
बहुत ही सुन्दर ढंग से लिखा है आपने। बधाई स्शीकारें।
गलती बताने के लिये तहे दिल से शुक्रिया सर !
Deleteशुक्रिया और आभार आपका !
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteशुक्रिया और आभार !
Deleteशुक्रिया और आभार !
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