तुम दिल से तो सुनो

एक बचपन 
जो आज फिर फिर मिलता है 
ख़ाली वक़्त में 
और मिट्टी रूह में घुलती है 

जब सपनों से भर रही थी
पिता जी डूबे हुए थे 
दादा जी बाहर 
रहे थे तब

एक साथ 
वक़्त कही सुंदर था 
कही क़रीब था 
और कही दूर होता जा रहा था 

आज भी वक़्त 
ख़्वाब है 
पास पास है 
दूर होकर मुस्कुरा रहा है

फिर किसे पाना 
क्या खोना 
किस पार जाना 
सब हम सब है 

तुमसे आज 
फिर कहती हूँ 
बस मुस्कुरा दो 
जिस्म छूट जाए
रूह मिल जाए !--- संध्या आर्य १४//२०२०

4 comments: