पुकार अमिट अनंत

गुनाह
धर्म का ग़लत मतलब निकालना है
इश्क़ आत्मा है
भौतिकता द्वैत के साथ आई है
जन्म और मृत्यु के बीच ख़त्म होगी

क्षणभंगुर जिस्म पर
सामाजिक नाच की समय सीमा ज़िंदगी है
घुँट घुँट पीने से
प्यास की मिठास
रूह तक पहुँचती है

पहाड़ी से फूटने वाला सोता
उसके लिये है
यह यक़ीन उसे कौन देगा
जहाँ से वो निकलती है
वहाँ कोई पूरब पश्चिम नहीं है
सिर्फ़ संभावनाओं की तलाश शेष है

पुकार अमिट अनंत
शून्य में पड़ी लिबास को
बेवजह आकार मत दो
कहीं खो जाएगी ।

2 comments:


  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना ....... ,.8 जनवरी 2020 के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद

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