तुम चाहो तो

चाहो तो 

ख़ुशबू 

एहसास

और चाँद बना दो 

तुमसे होकर गुज़र जाऊँ 


और तुम 

एहसास 

ख़ुशबू  और 

चाँद से भर जाओ 


ना ‘तुम’ जिस्म 

और ना ‘मैं’जिस्म

हमारा खोना क्या 

और पाना क्या 

 

नदी और पुल का प्रेम

ईश्वरीय प्रेम है ।

7 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना आज शनिवार 9 जनवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन " पर आप भी सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद! ,

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  2. सुंदर दार्शनिक कविता...

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  3. उत्कृष्ट प्रस्तुति ।

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  4. वाह बहुत खूब।
    सुंदर सृजन।

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