कौन से कोने में
छुपाऊ
सफेद कबूतरों को
रह सके, सफेद
और बदले नही
उनकी दुनिया
ऐसा मुकम्मल जहाँ
कहाँ से लाऊँ
भोर के होते ही
घण्टालो के बीच
दब जाती है सुहानी सुबह
शोर के साथ
दिन की शुरुआत
रास्तो पर बिखर जाती है
मासूम हंसी
और
कुचलते जाते हैं
निर्मम पैर
उन्हें पता है कि
तपिश क्या होती है
पर क्या करे
सूरज थोडा और गर्म होता जाता है
सोचती हूँ एक सूराख बनाऊ
हिमखण्डो के बीच
कंचनजंघा पर रख उन्हें
सौप दूँ तुम्हारे विशाल आगोश में
और सो जाऊ एक गहरी नींद
वही
जहाँ तुम्हारा आना जाना है !!
छुपाऊ
सफेद कबूतरों को
रह सके, सफेद
और बदले नही
उनकी दुनिया
ऐसा मुकम्मल जहाँ
कहाँ से लाऊँ
भोर के होते ही
घण्टालो के बीच
दब जाती है सुहानी सुबह
शोर के साथ
दिन की शुरुआत
रास्तो पर बिखर जाती है
मासूम हंसी
और
कुचलते जाते हैं
निर्मम पैर
उन्हें पता है कि
तपिश क्या होती है
पर क्या करे
सूरज थोडा और गर्म होता जाता है
सोचती हूँ एक सूराख बनाऊ
हिमखण्डो के बीच
कंचनजंघा पर रख उन्हें
सौप दूँ तुम्हारे विशाल आगोश में
और सो जाऊ एक गहरी नींद
वही
जहाँ तुम्हारा आना जाना है !!
बहुत ही खुबसूरत ख्यालो से रची रचना......
ReplyDeleteसोचती हूँ एक सूराख बनाऊ
ReplyDeleteहिमखण्डो के बीच
कंचनजंघा पर रख उन्हें
सौप दूँ तुम्हारे विशाल आगोश में
और सो जाऊ एक गहरी नींद
वही
जहाँ तुम्हारा आना जाना है !!
वाह क्या बात काही है ...सुंदर प्रस्तुति
गहन भाव व्यक्त करती
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन अभिव्यक्ति...
बेजोड़ लिखती हैं आप...
ReplyDeletewah kya khayal hai...
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