बिखरना
नसीब फूलों का
माली नही वे कि सँवार देंगें
हौसलों को उड़ान देंगें
मंझधार में
छोड़ रहे कस्तियों को
बुझाते रहें रौशनी
टटोलते हुये अंधेरों को
बाबूल से
बबुल हुये वे कब
कंटीली ढाँचों के बीच
बसा फूल का शहर
बनी दुनिया तब
खुशबू बहुत थी !
नसीब फूलों का
माली नही वे कि सँवार देंगें
हौसलों को उड़ान देंगें
मंझधार में
छोड़ रहे कस्तियों को
बुझाते रहें रौशनी
टटोलते हुये अंधेरों को
बाबूल से
बबुल हुये वे कब
कंटीली ढाँचों के बीच
बसा फूल का शहर
बनी दुनिया तब
खुशबू बहुत थी !
बनी दुनिया तब
ReplyDeleteखुशबू बहुत थी !
वाह.....बेहद खूबसूरत पंक्तियाँ.....
अनु
बहुत खूब ... प्रतीक के माध्यम से बात करने का प्रयाद ... लाजवाब ...
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी
ReplyDelete--- शायद आपको पसंद आये ---
1. DISQUS 2012 और Blogger की जुगलबंदी
2. न मंज़िल हूँ न मंज़िल आशना हूँ
3. गुलाबी कोंपलें
बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...
ReplyDeleteबेह्तरीन अभिव्यक्ति ...!!
शुभकामनायें.
Aaj us khushbu ki bahut sakht zarurat hai.
ReplyDelete............
कितनी बदल रही है हिन्दी !
बेजोड़ भावाभियक्ति....
ReplyDeleteगूढ़ भाव लिए बेहतरीन !
ReplyDeleteप्रभावशाली रचना ...शुभकामनाएं जी /
ReplyDelete...
ReplyDeleteबनी दुनियाँ तब खुशबू बहुत थी
बिखरना
नसीब फूलो का
माली नही वे कि
सँवार देंगें
हौसलों को उड़ान देंगें
मंझघार में
छोडते रहे कस्तियों को
बुझाते रहें रौशनी
टटोलते हुये अंधेरों को
बाबूल से
बबूल हुये वे कब
कंटिली ढाँचों के बीच अब
बसा फूलो का शहर
बनी दुनिया तब
खुशबू बहुत थी !बहुत सुन्दर भाव व्यंजना लिए है रचना ,बधाई .
शद्ध कर लें वर्तनी ...कविता और उड़ान भरे ...
बिखरना नसीब "फूलों "का
माली "नहीं " वे ...
"मंझधार" में ...'
"छोड़ते " रहे "कश्तियों" को वे ...
बुझाते "रहे ".......रौशनी
"कंटीली "........शुक्रिया .....
,ram ram bhai
मंगलवार, 14 अगस्त 2012
क्या है काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा की बुनियाद ?
http://veerubhai1947.blogspot.com/
बेहतरीन प्रस्तुति ....आभार
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