लिबास फिर उतर गया
एक और दिन ढ़ल गया
शाम से विदा लिया
भोर फिर बिकल हुआ
नयी सुबह फिर हुई
पहचान फिर बदल गया
कहाँ कहाँ खोजूं तुझे
तपिश भरी दोपहरी में
सफ़र को फिर निकल पड़े
मंजिल की प्यास लिये
धूप छांव घना कही
उम्मीद बड़ी है रात नई
वह सुबह कभी तो आयेगी !!
एक और दिन ढ़ल गया
शाम से विदा लिया
भोर फिर बिकल हुआ
नयी सुबह फिर हुई
पहचान फिर बदल गया
कहाँ कहाँ खोजूं तुझे
तपिश भरी दोपहरी में
सफ़र को फिर निकल पड़े
मंजिल की प्यास लिये
धूप छांव घना कही
उम्मीद बड़ी है रात नई
वह सुबह कभी तो आयेगी !!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteगणेशचतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएँ!
लाइनें अच्छी बन पड़ी हैं। कुछ औऱ बेहतर हो सकती थीं। नहीं क्या?
ReplyDeleteउम्मीद बड़ी है रात नई
ReplyDeleteवह सुबह कभी तो आयेगी !!
bahut sundar......
बहुत सुंदर
ReplyDeleteअच्छी रचना
सुबह जरूर आती है ...
ReplyDeleteआशा बनी रहे ...
कल 21/09/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteउत्कृष्ट कृति
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