चाहत जब शून्य से भर जाये

शून्य के आगे
और पीछे भी तो है कुछ
पर तू जहां है
वहाँ ना भरना बाकी है
और ना खाली होना

जब भी वह अपने
जगह पर थोड़ा खाली होती है
तब जलती है
कविताये शब्द शब्द 

जब वह भर जाना चाहती है
तो पिघल जाते है समस्त हिमखंड
और डूब जाते हैं महादेश  

पर इक ज़रा तेरे हो जाने में
क्या कुछ नहीं उगता
सूनी धरती के माथे पर

ओंस की नमी की तरह  
फैला हुआ है प्यासी जमीन पर !!

6 comments:

  1. बहुत सुन्दर गहरे भाव..

    सादर

    नीरज 'नीर'
    मेरी नयी कविता
    KAVYA SUDHA (काव्य सुधा): अषाढ़ का कर्ज

    ReplyDelete
  2. कई बार पढ़ते पढ़ते दृष्टि अटक जाती है ... भावों को घूंट घूंट पीती है

    ReplyDelete
  3. .बहुत सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति . आभार तवलीन सिंह की रोटी बंद होने वाली है .महिलाओं के लिए एक नयी सौगात WOMAN ABOUT MAN

    ReplyDelete