सोन चिड़िया

बडे शहर में
बडी बिमारियां निगलने लगी है 
इंसान को
बात आंखों से मुस्कुराने वाली लडकी की है 
जिसने अभी
ना गरमाहट देखी थी उगते सूरज का
और ना ही चांद देखा था चांदनी की
बस यादों में रहने को मजबूर कर गई
उन सभी लोगो को जो उसके अपनो में शामिल थे 
उसके मुस्कुराते होंठ
जब हाय और हेलो के लिये खुलते थे
तो मानो ऐसा लगता था कि
सामनवाले की खुशबू से लिपटी रही हो वर्षों
कुछ इसतरह से
प्रेम और स्नेह से भर देती थी वह सबको 
मेरी बिटिय़ां की मित्रमंडली जब भी इक्कठा होता हैं
तो नन्हीं गौरैयों की जामात लगती
ऐसा महसूस होता है अकसर
नन्हीं सोन चिड़ियों को अभी अभी पंख निकल रहा हैं
आकाश की ऊंचाई और गहराई मापने के लिये 
पर आज उसमें से एक
सुनहरे पंखों वाली सोन चिड़िया फ़ूर हो गई
इस वादे के साथ कि
मैं तो रहूंगी यादों में साथ
पर दिखाई नही दूंगी
कुछ इसतरह से आज
थोडे थोडे पंख बाकी सोन चिड़ियों के झड गये है
और सब बदहवासी में आकाश देख रही हैं 
ऐसे वक्त में वह हमेशा के लिये
हमारे चेहरे पर
वह अपनी दो मुस्कुराती आंखें छोड गई है
वैसे थोडा कम मुस्कुराती हूं
पर आज से थोडा ज्यादा मुस्कुराऊंगी
तुम्हारी याद को जिन्दा रखने के लिये
अय सोन चिड़िया !

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (10-03-2019) को "पैसेंजर रेल गाड़ी" (चर्चा अंक-3269) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत बढ़िया

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