हम बादल थे
बरस गये
पर
जमीन सूखी रह गई
बरस गये
पर
जमीन सूखी रह गई
तेरे समान के तह में
दुनिया जहान सब था
शरीर कुछ भी ना था
हमारे लिये
इक रुह की प्यास में
हम जुदा रह गये
हमारे लिये
इक रुह की प्यास में
हम जुदा रह गये
ओंस थे घास पर
और नमी आंखों की
शब्द शब्द पिघले
पर
पंक्तियों की कतार में
कविता प्यासी रह गई!
और नमी आंखों की
शब्द शब्द पिघले
पर
पंक्तियों की कतार में
कविता प्यासी रह गई!
पंक्तियों की कतार में
ReplyDeleteकविता प्यासी रह गई!
कविता प्यासी रह गयी तभी तो ऐसी नायाब कविता का जन्म हुआ
बहुत सुंदर
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (17-04-2019) को "बेचारा मत बनाओ" (चर्चा अंक-3308) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह!!!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...