धरती की सतह पर
जिस्म इंद्रियों का एक संग्रह भर
और इसका नष्ट होना
नई संभावनाओं को जन्म देना है
और आकाश के नीलेपन पर
रुह एक सफ़ेद बिंदी है!
जब तक रौशनी है
उसकी सतह पर हरियाली है
पर शरीर का संबंध
अंधकार से है
जो तमाम बौद्धिक इतिहास पर
कई प्रश्न छोडता है
जिस्म इंद्रियों का एक संग्रह भर
और इसका नष्ट होना
नई संभावनाओं को जन्म देना है
और आकाश के नीलेपन पर
रुह एक सफ़ेद बिंदी है!
जब तक रौशनी है
उसकी सतह पर हरियाली है
पर शरीर का संबंध
अंधकार से है
जो तमाम बौद्धिक इतिहास पर
कई प्रश्न छोडता है
पहचान अस्तित्व से है
और रौशनी की सहभागिता
इसे संभव बनाती है
मैं कोई जिस्म नही
मिट्टी भर हूँ
ख्वाहिश भी नही
उडती फ़िरती हवा भर हूँ
और रौशनी की सहभागिता
इसे संभव बनाती है
मैं कोई जिस्म नही
मिट्टी भर हूँ
ख्वाहिश भी नही
उडती फ़िरती हवा भर हूँ
उसके लिखे से जन्मी
सीधे शब्दों में
शब्दों की
एक बिंदी भर हूँ !
सीधे शब्दों में
शब्दों की
एक बिंदी भर हूँ !
१२/६/२०१९
बहुत सुन्दर रचना 👌
ReplyDeleteसादर
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 12/06/2019 की बुलेटिन, " १२ जून - विश्व बालश्रम दिवस और हम - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteवाह!!बहुत खूब!
ReplyDeleteपहचान अस्तित्व से है। रूह एक सफेद बिंदी है। उम्दा।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (14-06-2019) को "काला अक्षर भैंस बराबर" (चर्चा अंक- 3366) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
अति सुंदर लेख
ReplyDeleteवैसे आपको यह लेख लगता है तो क्या किया जा सकता है आपका ग्यान विस्तRiत कुछ ज्यादा है और हम जैसे तो अपने को कुछ कहने से रहे ! आभार !
ReplyDeleteयही बिंदी जब आकर लेकर फैटी है .... शब्द शब्द जीवन बन जाती है ...
ReplyDeleteअच्छा लिखा है ...