वह उन समस्त संभावनाओं को
बचा लेना चाहती थी
जिनका अंत वर्षों पहले हो चुका था
और जिसके ना होने से
उथल पुथल मची थी
और मानवीय संवेदना का चेहरा पूर्णत: परिवर्तित हो चुका था
संभावनाओं के गुणतत्व में
वह सब कुछ था
जिससे हम और तुम बने थे
बचा लेना चाहती थी
जिनका अंत वर्षों पहले हो चुका था
और जिसके ना होने से
उथल पुथल मची थी
और मानवीय संवेदना का चेहरा पूर्णत: परिवर्तित हो चुका था
संभावनाओं के गुणतत्व में
वह सब कुछ था
जिससे हम और तुम बने थे
नदी थी
बयार थी
रौशनी था
वो तमाम पहाड़ थे
जिससे वह खुद को टिका कर रखी थी
बयार थी
रौशनी था
वो तमाम पहाड़ थे
जिससे वह खुद को टिका कर रखी थी
दो भटके हुये
सफ़ेद हंस भी थे
जिनका तालाब के पास होने का मतलब
बसंत का होना था
कुछ ऐसा भी हो नाथा जैसे कि
मौन दीवरों पर दरवाजे और खिडकी का होना था
इसके आलावा
एक रौशनदान का होना
जहां से एक नन्ही गौरैया आती जाती थी!
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (06 -07-2019) को '' साक्षरता का अपना ही एक उद्देश्य है " (चर्चा अंक- 3388) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
वाह!!लाजवाब!
ReplyDeleteवाह बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबधाई