तुम जिन्दा रहो

तमाम यादों से बनी
एक रात को  
सपनों ने उसे बाहर किया तब
समन्दर में लहरें बहुत तेज
उठ-उठकर ठीठक रहीं थीं तब
वही किनारे पर बैठी हुई बची जिन्दगी ने
उसे नई सुबह का इंतजार करने को कहा

रौशन जहान में
माना की सितारे टूटते भी हैं

तुम जिन्दा रहो
उम्मीद का क्या
बनता और बिगडता भी है
पर याद उस दीपक की रखो
गहरे अंधेरें में भी
जो तुम्हें जीने का हौसला देता है ! 

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (28-08-2019) को "गीत बन जाऊँगा" (चर्चा अंक- 3441) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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