हम जिस जगह होते है वही खो जाते हैं

हमारे मर्म में
धरती और आकाश तत्व था
तलाश उन बादलों की थी
जिनके ना होने से
अकाल था और
काल कल्वित लोग थे

शब्द
दर्द के पुकार थे
रोकर थकते नहीं थे
वे पुन: पुनर्जीवित हो जाते थे

तूफ़ान में फँसे लोग
आँख से नहीं
सिर्फ़ दिल से देख पाते हैं,साहब
हम जिस जगह होते है वही खो जाते हैं ।

3 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (२४ -११ -२०१९ ) को "जितने भी है लोग परेशान मिल रहे"(चर्चा अंक-३५२९) पर भी होगी
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
    महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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  2. बहुत शानदार और गहरी अभिव्यक्ति कम शब्दों में बात कह पाना सार्थकता है लेखन की ।
    साधुवाद।

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