शाम के धुंधलके में
उसने परिंदो को सिद्दत से देखा
सभी लौट रहे थे
बदलियों के पीछे से आती लाल रौशनी
रातरानी से लिपट रही थी
झरने के सुमधूर लय ताल के साथ
कई-कई नदियाँ एक साथ बहे जा रही थी
आसमान मुस्कुराते हुये
तारों को एक एक कर
चांदनी के आंचल पर टांकता जा रहा था
चांद सागर से मिलन की चाह लिये
छ्लकता रहा रातभर
उसने जमीन और आसमान को
आंखो में कैद कर लिया
गोल मोतियों को
दफन कर पृथ्वी के सीने में
हरी घासों में लहलहाती रहीं वह
हिरणों के नन्हें पाँव कोमल जो थे
सूरज उसके अर्श और फ़र्श में
कही खो सा गया था
कुछ सामान थे जो
सफ़र में छुट गये कही !!
उसने परिंदो को सिद्दत से देखा
सभी लौट रहे थे
बदलियों के पीछे से आती लाल रौशनी
रातरानी से लिपट रही थी
झरने के सुमधूर लय ताल के साथ
कई-कई नदियाँ एक साथ बहे जा रही थी
आसमान मुस्कुराते हुये
तारों को एक एक कर
चांदनी के आंचल पर टांकता जा रहा था
चांद सागर से मिलन की चाह लिये
छ्लकता रहा रातभर
उसने जमीन और आसमान को
आंखो में कैद कर लिया
गोल मोतियों को
दफन कर पृथ्वी के सीने में
हरी घासों में लहलहाती रहीं वह
हिरणों के नन्हें पाँव कोमल जो थे
सूरज उसके अर्श और फ़र्श में
कही खो सा गया था
कुछ सामान थे जो
सफ़र में छुट गये कही !!
बहुत बढ़िया रचना
ReplyDeleteGyan Darpan
..
सुबह की ही ताजगी लिए, एक खूबसूरत कविता!! :)
ReplyDeleteआसमान मुस्कुराते हुये
ReplyDeleteतारों को एक एक कर
चांदनी के आंचल पर टांकता जा रहा था
चांद सागर से मिलन की चाह लिये
छ्लकता रहा रातभर
ये पंक्तियाँ दिल को छु गयी.....बहुत ही सुन्दर तरीके से भावो को शब्दों में पिरो दिया हैं अपने....