यह प्रेम ही तो है

यह प्रकृति का
प्रेम ही है कि
शाम
मंदिर और मस्जिद पर
समान रौशनी से आती है

रात भी दोनो को
साथ साथ गहरे उतारती है
चाँद
दोनो का एक ही होता है
तारो से भरे आसमान को
दोनो साथ साथ ओठते है

सुबह का सूरज भी एक ही होता है
और इसतरह सबको एक-दूसरे जोडती है



5 comments:

  1. प्रकृति एक सेतु ही है !
    बेशक !

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  2. बेहद भाव पूर्ण ..काश प्रकृति के इस समन्वयन को समझ पाता इंसान ...शुभ कामनाएं !!

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  3. कितनी अनकही बातें बिना कहे कहती है आपकी रचना....
    बहुत बढ़िया...
    सादर बधाइयां...

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  4. मगर यही तो विडम्बना है की लोग इतनी सी बात को समझ ही नहीं पाते...की जब प्रकृति भेद नहीं करती तो हम क्या है। सुंदर एवं सार्थक रचना...

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