आसमान से लगकर
टीकता वजूद मेरा
पर उसके पहले
जमीन ने
हमें तोडा बहुत है
टीकता वजूद मेरा
पर उसके पहले
जमीन ने
हमें तोडा बहुत है
यूं आये हो तो
बरस भी जाओ
काले साये का
डेरा बहुत है
बरस भी जाओ
काले साये का
डेरा बहुत है
गिनते हुये एहसास
गिरते है जब
ऊंगलियों से छूटकर
क्या कहे
उन्हें जोडा बहुत है !
गिरते है जब
ऊंगलियों से छूटकर
क्या कहे
उन्हें जोडा बहुत है !
wah
ReplyDeleteआवश्यक सूचना :
ReplyDeleteसभी गणमान्य पाठकों एवं रचनाकारों को सूचित करते हुए हमें अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है कि अक्षय गौरव ई -पत्रिका जनवरी -मार्च अंक का प्रकाशन हो चुका है। कृपया पत्रिका को डाउनलोड करने हेतु नीचे दिए गए लिंक पर जायें और अधिक से अधिक पाठकों तक पहुँचाने हेतु लिंक शेयर करें ! सादर https://www.akshayagaurav.in/2019/05/january-march-2019.html