बनते बिगडते एहसास

आसमान से लगकर
टीकता वजूद मेरा 
पर उसके पहले
जमीन ने
हमें तोडा बहुत है 

यूं आये हो तो
बरस भी जाओ
काले साये का
डेरा बहुत है 

गिनते हुये एहसास
गिरते है जब
ऊंगलियों से छूटकर
क्या कहे
उन्हें जोडा बहुत है !

2 comments:

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