कई दिनों से
खाली पडी है दीवार
जो कभी अपनों की
तस्वीरों से हरी भरी रहती थी
जानें कौन से वक्त में
बना डाली थी
हवाई किला उसनें
दीवार पर टंगी तस्वीरों ने
सांस लेना छोड दिया था
सख्त दीवारों में
सीलन पडी थी गुजरें वक्त का
जिन्हें छूते ही बेज़ान हो
गिरने लगती थी पपडियाँ
दीवार सूनी थी
खराश गहरी
लौटता वक्त बडी सलिकें से
कुरेद गया था उसे !!
खाली पडी है दीवार
जो कभी अपनों की
तस्वीरों से हरी भरी रहती थी
जानें कौन से वक्त में
बना डाली थी
हवाई किला उसनें
दीवार पर टंगी तस्वीरों ने
सांस लेना छोड दिया था
सख्त दीवारों में
सीलन पडी थी गुजरें वक्त का
जिन्हें छूते ही बेज़ान हो
गिरने लगती थी पपडियाँ
दीवार सूनी थी
खराश गहरी
लौटता वक्त बडी सलिकें से
कुरेद गया था उसे !!
लौटता वक्त बडी सलिकें से
ReplyDeleteकुरेद गया था उसे !!
संवेदनशील अभिव्यक्ति
बेहतरीन कविता।
ReplyDeleteसादर
बहुत बढ़िया रचना.
ReplyDeleteसख्त दीवारों में
ReplyDeleteसीलन पडी थी गुजरें वक्त का
जिन्हें छूते ही बेज़ान हो
गिरने लगती थी पपडियाँ
...बहुत मर्मस्पर्शी और संवेदनशील प्रस्तुति..बहुत सुन्दर
अच्छी रचना है
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी रचना....
ReplyDeleteलौटता वक्त बडी सलिकें से
ReplyDeleteकुरेद गया था उसे !!
बहुत बढ़िया
waah ..kya baat hai..sandhya...bahut khoob
ReplyDeleteबेहद गहन और मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।
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