जिन्दगी कई तरह से
धुमती रही चबुतरे पर
रखे सांसों के इर्द-गिर्द
पनाह चाहिये उसे
तेरी तीखी तल्ख
शिकायतों से बचने के लिये
चलता उगता बढता वक्त
कभी भी नही रुका
छिले जख्म सुखे नही कभी
नम सांसो से
जिंदगी पिघलती रही
शिकायते तेरी जायज़ रही
पहचान तो मुक्कमल हुई
करीब आते गये और
दो गज जमीन नसीब ना हुई
रुह को
जिंदगी अपने लिबास में
खाक छानती रही
दरख्त की
दर्द को नंगे हाथो में लिये
फिरती रही वो
यह सच है कि
अभी एक ख्याल बाकि है
तू मिल तो सही !!
धुमती रही चबुतरे पर
रखे सांसों के इर्द-गिर्द
पनाह चाहिये उसे
तेरी तीखी तल्ख
शिकायतों से बचने के लिये
चलता उगता बढता वक्त
कभी भी नही रुका
छिले जख्म सुखे नही कभी
नम सांसो से
जिंदगी पिघलती रही
शिकायते तेरी जायज़ रही
पहचान तो मुक्कमल हुई
करीब आते गये और
दो गज जमीन नसीब ना हुई
रुह को
जिंदगी अपने लिबास में
खाक छानती रही
दरख्त की
दर्द को नंगे हाथो में लिये
फिरती रही वो
यह सच है कि
अभी एक ख्याल बाकि है
तू मिल तो सही !!
दिल को छू लेने वाली रचना बहुत अच्छी लगी .....
ReplyDeleteबेहतरीन लिखा है!
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया।
ReplyDeleteसादर
behtreen rachna...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर बिम्ब प्रयोग...
ReplyDeleteखुबसूरत भावाभिव्यक्ति...
सादर बधाई...
Bahut sundar bhavanaon ki khubsurat abhivyakti...
ReplyDeleteगहन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबेहतरीन ....दिल तक पहुंची
ReplyDeleteगहन शब्दों का समावेश ।
ReplyDeleteजिंदगी अपने लिबास में
ReplyDeleteखाक छानती रही
दरख्त की
दर्द को नंगे हाथो में लिये
फिरती रही वो ...
गहन भाव युक्त अभिव्यक्ति !!
सादर !!!
tera milna abhi baaki hai....bahut sundar sandhya
ReplyDeleteह्र्दय की गहराई से निकली अनुभूति रूपी सशक्त रचना
ReplyDeletebahut hi behterrn dhang se likha hai aapne sandhyaji..wah
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