छोटे रोशनदानों से रौशनी तेज़ और धारदार पहुंचती थी उनदिनों

सूना था देखा भी नही
बडे घरो में बिन खिडकियों के
छोटे रोशनदानवाले कमरों में
उडती चिडियों की कहानी

उनका निकलना
कितना कठिन था उनदिनों
दुनिया तो ऐसी ही थी
सुंदर हमेशा से

सूरज तो आसानी से पहुंच जाता
अपने नुकीली और धारदार रौशनी के साथ
छोटे रोशनदानो से होकर
प्रकाश पर नाचते थे
हवा में घुलें धूल भी
बडे आसानी से दिखते थे

सांस कैसी होती थी उनकी
कल्पना में
पंख टुटने जैसा दिखता था
नानी दादी की कहानियों से
वे पेट भरती थी
उर्जा उन्ही कहानियों से उन्हे मिलती थी
और दिनभर उडती

चक्की चुल्हें बर्तनों के बीच
खनकने जैसा हंसती थी वे
उनका खनखनाना दरवाजे तक नही पहुंचता था 
हाथियों के चित्रवाले दरवाजें होते थे उनदिनों

बडी काबिल थी वे
अपनी थकान पंखो पर
नही डालती थी
उनके अश्क हवा में ही सुख जाते

उडान में संचार का माध्यम
रोशनदान होता बाहरी परिंदो से
देश दुनिया की खबरें मिलती उन्हें
और वे आवाज़ से पहचानती थी उन्हें
उन बुत चिडियों की
आसमान बहुत सुनहरा था 

पर जितना आसमान खुला है आज
कही ज्यादा गहराई में धंस गया है 
पंख बोझिल है आज चिडियों की
उडने से पहले ही बिखर जाती है
बडें और जालीदार आसमान के बीच
आज सूरज दिखता है पहुंचता नही
मद्धम रौशनी के बीच
धुंधले चित्रो में
फंसे परिंदो की कहानी
अजब होने के साथ गजब भी है

पृथ्वी उतनी हरी नही आज
जितनी की छोटे रोशनदानों में हुआ करती थी
ईंट पत्थरों के घरों ने
हरे रंग की हरियाली को जला जो डाली है
उनका उडना जितना भी हो पर सुरक्षित कम
आकाशगंगाओं में खो जाने का खतरा भी ज्यादा है !!!

4 comments:

  1. apne hisse ki roshni mangta hai mera ghar ...

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  2. प्रकृति के निरंतर दोहन का खामियाजा तो उठाना पड़ेगा।

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  3. बहोत ही भावस्पर्शी कविता |

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  4. संध्या जी
    नमस्कार
    रचना " छोटे रोशनदानों से रौशनी तेज़ और धारदार पहुँचती थी उन दिनों" पढी , पर्यावरण पर केन्द्रित नींम पंक्तियाँ बहुत अच्छी हैं.

    पृथ्वी उतनी हरी नही आज
    जितनी की छोटे रोशनदानों में हुआ करती थी
    ईंट पत्थरों के घरों ने
    हरे रंग की हरियाली को जला जो डाली है
    - विजय

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