सांस भी कटते रहे
टुकडा टूकडा
वजूद से
रुह की परछाई
इक धुँआ सा
जिसपर पैर चलने लगते थे
बेतहाशा
थकती नही
लौटती आंखे
रख देती थी उम्मीद
अधूंरें ख्वाब का
कही किसी पहाडी के
कोख में
सुफेद चादर पर
चंद अल्फाज़ बिखेरे पडे रहे
सदियों की भटकन
फूलो की खुशबूओ में बंद रही
धूप है
उम्मीद है
किरणों सी तेरी बाते
भटकन है
तू कही नही मिलता
स्पर्श में
पर
तू आग हैं
और मोक्ष !!
टुकडा टूकडा
वजूद से
रुह की परछाई
इक धुँआ सा
जिसपर पैर चलने लगते थे
बेतहाशा
थकती नही
लौटती आंखे
रख देती थी उम्मीद
अधूंरें ख्वाब का
कही किसी पहाडी के
कोख में
सुफेद चादर पर
चंद अल्फाज़ बिखेरे पडे रहे
सदियों की भटकन
फूलो की खुशबूओ में बंद रही
धूप है
उम्मीद है
किरणों सी तेरी बाते
भटकन है
तू कही नही मिलता
स्पर्श में
पर
तू आग हैं
और मोक्ष !!
सुफेद चादर पर
ReplyDeleteचंद अल्फाज़ बिखेरे पडे
सदियों की भटकन
फूलो की खुशबूओ में बंद
Bahut achchhe bimbon aur shabdon ka prayog...achchhi kavita.
Hemant
बहुत गहन अभिवयक्ति...
ReplyDeleteBAHOT HI KHUB likha hai aapne....jo bechen hoke kishka intazar kar raha hai....ushki rah mai aakhe bhi thak chuki hai,o itni dur tak ushe dhud rahi hai....itni koshisho ke bad bhi ek umeed baki hai....KI YE ZINDAGI TU KAHI TO HAI..JO TERA INTZAR KAR RAHI HAI MERI AAKHE BUS EK EK UMEED BAKI HAI....
ReplyDeleteBahut sahi
ReplyDeleteसुफेद चादर पर
चंद अल्फाज़ बिखेरे पडे
सदियों की भटकन
फूलो की खुशबूओ में बंद
गहरी अभिव्यक्ति ..
ReplyDeleteसुफेद चादर पर
ReplyDeleteचंद अल्फाज़ बिखेरे पडे रहे
सदियों की भटकन
फूलो की खुशबूओ में बंद रही
..wah bahoot khoob