आसमान धुआँ-धुआँ सा

खडखडाती हुई पत्तियाँ
मन भागता हुआ कोसो दूर
नदियों ,झीलो, सागर सब से

जगह जगह पर
रोते बिलखते
भूख से
मासूम बच्चें

आसमान धूआँ से भरा हुआ
जल रही है इंसानियत कही
राजनीति की आंच
कहे या
भूखे मन का तांडव

खाक होने पर भी
सुलग रही है जिंदगी यहाँ
वे है कि घात लगाये बैठे है
और उनके एहसास में
तितलियाँ उड रही है हर कही

जंगल है खुंखार जानवरों से भरा पडा
हम है कि खुशबू तलाशते है
जीना सिखते है
आर पार की कहानी पर

नाखूनों के बीच बच्चों की किलकारियाँ
बौराई आंखो में पलती उनकी बेटियाँ
कोठियाँ
ना जाने कितने दिनो की ताताथईयाँ

वह बहुत याद आता है
दूर किसी पहाड पर बैठे परिंदे को
जब बच्चों सा रोता है
उनके बच्चों के लिये !!

8 comments:

  1. खाक होने पर भी
    सुलग रही है जिंदगी यहाँ
    वे है कि घात लगाये बैठे है
    और उनके एहसास में
    तितलियाँ उड रही है हर कही
    भाव पूर्ण अभिवयक्ति

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  2. जंगल है खुंखार जानवरों से भरा पडा
    हम है कि खुशबू तलाशते है
    जीना सिखते है
    for every one

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  3. bahut gahan bhaav bahut achchi abhvyakti.

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  4. सच में लाजवाब ...

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  5. वे है कि घात लगाये बैठे है
    'घात' के इस आघात को शिद्दत से बयान किया ...

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  6. मार्मिक!!लाजवाब!

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