सांसों में घुली रेखायें

आड़ी और तिरछी रेखाओं के बीच 
कुछ रेखायें सामानांतर भी चलती है
कहीं  तक जाती हुई
वे जोडती है
समानांतर चल रही रेखाओ को
जुटना और टुटना भी पडता है
कई बार इनके गणित में फंसकर 

अब क्या कहें किसे कहें
हर जगह पर है आड़ी तिरछी रेखायें
जिसमें फंसे हुये विवश महीन धागें 
हवा अब सांस लेने की कला से आती है

सीधी और सरल चलने वाली रेखायें
फंस जाती है अक्सर
अनसुलझी रेखाओ के वक्राकार के बीच
फंसी सांसे और उलझी रेखायें 
निहारती है आसमान घण्टों
शायद वह टपके और डूब जाये

ऐसा कुछ नही होता जिससे वे
अपने गहन पीड़ा से बाहर आ सके
जब तक सांस चलेगी  
आसमान शांत स्थिर
और अविचलित मुद्रा में
निहारता रहेगा उन्हें वर्षो

दूर बैठें शाख पर एक परिंदा
उड जाता हो महीन धागों से परे 
बेबस असहाय और निरीह छोड़कर
तब अपने दर्द में डूबते हो खोजते हुये
कुछ गांठें जिन्हें खोल दिये जाने से
पृथ्वी का हरा होना तय हो

बरबस बरसती है अश्क 
बहने लगती है नदियाँ
समानांतर रेखाओ के बीच !!

5 comments:

  1. बिन्दु से उपजे वुजूदों के बीच
    लकीरें और दायरे सफ़र करते हैं
    ख्वाहिश तवील उम्र तलब है
    उम्र हम मुख्तसर रखते हैं
    See
    http://hbfint.blogspot.in/2012/04/40-last-sermon.html

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  2. सामांतर रेखाएं कभी नहीं मिल सकती ...ये ही उनका सबसे बड़ा दर्द हैं

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  3. सुख और दुख दोनों के अपने अपने गुणा भाग हैं।
    जिस पर जो राज़ी है, उसी पर वह जी रहा है।
    जिन्होंने बग़ावत कर दी है वे भी कहां पहुंची ?
    कहीं न कहीं आकर उन्हें भी समझौता करना पड़ता है।

    अपनी ज़िंदगी को आसान करने के लिए हरेक समझौता करके ही जी रहा है।
    ख्वाहिशों की तकमील और इंसाफ़ महज़ किताबी अल्फ़ाज़ हैं।
    हक़ीक़त एक समझौता है हालात से।

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  4. बरबस बरसती है अश्क
    बहने लगती है नदियाँ
    समानांतर रेखाओ के बीच !!bhaut hi gahri abhivaykti.....,

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  5. संध्या जी
    आशीर्वाद
    कविता
    सुंदर प्रस्तुति

    सांसों में घुली रेखायें
    आड़ी और तिरछी रेखाओं के बीच

    कहीं तक जाती हुई
    समानांतर चल रही रेखाओ को
    जुटना और टुटना भी पडता है

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