कहते कहते कुछ
बेआवाज हो जाती है
तब उड़ती चिडियों को
देखने लगती है एकटक
फिर उंगलियों को चेहरे पर फिराती है
और गीले होने के एहसास से
होठो को चौड़ाकर
एक उदास मुस्कान
छोड देती है कई जोडी आंखो के बीच
इसतरह कुछ
सुबह से शाम तक के टिक टिक पर
जिंदगी की कढ़हाई में पकती है लगातार
घण्टों,दिनों,महीनों और सालों
तब कहीं वह परिपक्व होती है
छोटी छोटी बातों को निगलते हुये
और बड़ी बातों से फटी चादर को सिलते हुये
निकलना होता है रोज
मंजिल तय करने के वास्ते
पहचाने चेंहरो के बीच
अंजाने सफ़र पर
ये जिंदगी भी न !!
बेआवाज हो जाती है
तब उड़ती चिडियों को
देखने लगती है एकटक
फिर उंगलियों को चेहरे पर फिराती है
और गीले होने के एहसास से
होठो को चौड़ाकर
एक उदास मुस्कान
छोड देती है कई जोडी आंखो के बीच
इसतरह कुछ
सुबह से शाम तक के टिक टिक पर
जिंदगी की कढ़हाई में पकती है लगातार
घण्टों,दिनों,महीनों और सालों
तब कहीं वह परिपक्व होती है
छोटी छोटी बातों को निगलते हुये
और बड़ी बातों से फटी चादर को सिलते हुये
निकलना होता है रोज
मंजिल तय करने के वास्ते
पहचाने चेंहरो के बीच
अंजाने सफ़र पर
ये जिंदगी भी न !!
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति.....!!!
ReplyDeleteBahut Khoob
ReplyDeleteThanks
Arun
arunsblog.in
अंजाने सफ़र पर
ReplyDeleteये जिंदगी भी न !!
जिंदगी तो ऐसी ही है
बहुत सुंदर
ReplyDeleteक्या कहने
येही तो है जिंदगी ... फिर चाहें जो भी कहें ...
ReplyDeleteआपकी सभी प्रस्तुतियां संग्रहणीय हैं। .बेहतरीन पोस्ट .
ReplyDeleteमेरा मनोबल बढ़ाने के लिए के लिए
अपना कीमती समय निकाल कर मेरी नई पोस्ट मेरा नसीब जरुर आये
दिनेश पारीक
http://dineshpareek19.blogspot.in/2012/04/blog-post.html
सच्ची यह ज़िंदगी भी ना .....बस जीना इसी का नाम है।
ReplyDeleteलाईफ!! :)
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