सपनों के आकार प्रकार में

अंधेरें के उठा-पटक से
दीपक बुझ सा जाता है

उम्र में कैद
स्याही 
खत्म होने का नाम तक नही लेती
लिखती जाती है जिन्दगी
कमोवेश
आलाप प्रलाप

एक जुगनू रात भर जागता है
टिमटिमाता है
सपनों के आकार प्रकार में

कई वजहें
एक लकीर खिंचती हैं
सच के
इसपार और उसपार
कैद होता है आदमी
बिताये रिश्तों के उम्र में

ठूंठ शाख पर
चांद भी ठिठक जाता है
परिंदों ने शायद
कही और घर बना ली हैं !

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