लिबास हो या चेहरा दोनों उम्र काटतें हैं

दुनिया की तमाम धर्मों के चेहरे
अगर आकाश और धरती की तरह हो जाये
तब भी 
हरे लहलहाते जमीन पर
गेहूं की बालियों में
चांद का चेहरा होगा
और उसकी पूजा
इंसानियत बचाने के लिये है

इश्क अगर जिस्म है
तो रुह से निकलने वाली दुआ
मजलूमों के लिये होगी

उडती चादर पर
खुशबू प्रेम की है
हमारा अस्तित्व
पेड की जडों में है
और मिट्टी से तर-बतर

पहचान की कोई नाम नही होती
औरजैसे किताब की कोई उम्र नही
चाहे तुम जहां से उगो
पर जड तो मिट्टी का है

लिबास हो या चेहरा
दोनों
उम्र काटते हैं यहां!

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (29-07-2019) को "दिल की महफ़िल" (चर्चा अंक- 3411) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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