सिफर था
जिसपर करवट ली उसनें
देखती रही कि
जमीन और आसमान
कही एक जगह पर
डूब गये थे
मौसमों के फेर बदल नें
जमीन को गहरा
और आकाश को
और ऊँचा कर गया था
क्षितिज के किसी कोनें में
सांस ले रही करवट
देख रही थी
पिछ्ले कई दिनों की
कोशिशों के बाद
सूरज ने आंखे खोंली थी
साहिल पर
हिमगिरि के माथें को चुमतें हुये
पर बदलाव हर जगह
जारी था सौंरमंडल में
ग्रहों की साजिश थी
प्रकाशगति को बाधित करनें की
हम सब विस्थापित हो रहें थें
सिफर हो गई थी दुनिया
ग्रहतंत्रों के जाल में !!
जिसपर करवट ली उसनें
देखती रही कि
जमीन और आसमान
कही एक जगह पर
डूब गये थे
मौसमों के फेर बदल नें
जमीन को गहरा
और आकाश को
और ऊँचा कर गया था
क्षितिज के किसी कोनें में
सांस ले रही करवट
देख रही थी
पिछ्ले कई दिनों की
कोशिशों के बाद
सूरज ने आंखे खोंली थी
साहिल पर
हिमगिरि के माथें को चुमतें हुये
पर बदलाव हर जगह
जारी था सौंरमंडल में
ग्रहों की साजिश थी
प्रकाशगति को बाधित करनें की
हम सब विस्थापित हो रहें थें
सिफर हो गई थी दुनिया
ग्रहतंत्रों के जाल में !!
परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है :-)समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
ReplyDeleteसार्थक और बहतरीन पोस्ट........
ReplyDeleteगहन अभिव्यक्ति .. परिवर्तन होना तो स्वाभाविक है
ReplyDeleteबेहद गहन अभिव्यक्ति………शून्य से शून्य तक का सफ़र्।
ReplyDeletegahan abhivaykti rachna....
ReplyDeletesifar ka pryog achha laga.
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