तिलिस्म को करीब देख

गमों से पार हो
कश्ती
जला के दीप
करीब देख

अंधेरा हो घना
तो सुबह के साथ
सूरज को 
करीब देख

मचलते अरमान को 
गर गले लगाया तूने
तो दरिया को
करीब देख

हो सके तो लौट जा
आशियाने में
वरना आग को
करीब देख

जमीन और आसमान
मिलेंगे जरुर पर
उससे पहले
समंदर को
करीब देख

तेरी लेखनी में
वो दम है कि
छूते हुये आसमान को
करीब देख

वो है रहन्नुमा
कि तू बेफिक्र हो
साहिल को
करीब देख

माना मैंने आज की
शब्द है जादू तेरे
पर नादान दिल
तिलिस्म को
करीब देख !!

5 comments:

  1. वो है रहन्नुमा
    कि तू बेफिक्र हो
    साहिल को
    करीब देख

    प्रवाह मयी और सुन्दर रचना

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  2. मचलते अरमान.......दरिआ को देख ले...तेरे आगोश मे जल जाये...परवानो को करीब देख...आपको शुक्रिया कविता अच्छी है.

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  3. वाह बहुत खूब लिखा है आपने.... समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.com/.

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