शहर के नुक्कड पर लगे
पोस्टर की तरह जर्द हो चला है वो
पर शाख से गिरा नही अभी तक
अरसा कुछ सरक गया है
ठहरा है कई मौसमों के बीच
पहचान भी नही बदलता
रुत आती है और जाती है
उसे अपने गलियों ,चौराहों तथा चौराहो पर
चिपके पोस्टरो की तरह ही चिपका देखती है हरदम
हलांकि कई जगहो पर पोस्टरो को
परिंदो ने चोंच मारकर फाड दी है
बेचारे टंगे हुये है फटेहाल
और शहर की उस नुक्कड का पहचान बने खडे
या वे खडे है या उनमे शहर खडा है
किसी भी तरह से देखा जा सकता है
उसकी चौराहों से
सटी गलियाँ है और उनमें बहते नाले
शहर की पहचान के साथ ही बहते है
वे भर गये है प्लास्टिक के महिन थैलियो से
पर फिर भी वे शहर के
उसी गली के नाम से बहते है
ऐसा कहा जा सकता है कि
शहर नही छुटता उन गलियो का, चौराहो का और
नुक्कड पर टंगे पोस्टरो का
या गलियों में बहते नालों का
सभी के सभी अपने जगह पर वैसे ही है
और पहचान है
उन कुनबों का जिनका शहर से बाहर जाना
वक्त का तकाजा रहा
जर्द और सर्द
सभी मौसमो में साथ खडा रहा है
उनके होने के एहसास के साथ
लौटने का इंतजार में टिके हुये
और नही बदलता अपना पता वह
खत के आने के इंताजार में
शहर भी ना !!!
पोस्टर की तरह जर्द हो चला है वो
पर शाख से गिरा नही अभी तक
अरसा कुछ सरक गया है
ठहरा है कई मौसमों के बीच
पहचान भी नही बदलता
रुत आती है और जाती है
उसे अपने गलियों ,चौराहों तथा चौराहो पर
चिपके पोस्टरो की तरह ही चिपका देखती है हरदम
हलांकि कई जगहो पर पोस्टरो को
परिंदो ने चोंच मारकर फाड दी है
बेचारे टंगे हुये है फटेहाल
और शहर की उस नुक्कड का पहचान बने खडे
या वे खडे है या उनमे शहर खडा है
किसी भी तरह से देखा जा सकता है
उसकी चौराहों से
सटी गलियाँ है और उनमें बहते नाले
शहर की पहचान के साथ ही बहते है
वे भर गये है प्लास्टिक के महिन थैलियो से
पर फिर भी वे शहर के
उसी गली के नाम से बहते है
ऐसा कहा जा सकता है कि
शहर नही छुटता उन गलियो का, चौराहो का और
नुक्कड पर टंगे पोस्टरो का
या गलियों में बहते नालों का
सभी के सभी अपने जगह पर वैसे ही है
और पहचान है
उन कुनबों का जिनका शहर से बाहर जाना
वक्त का तकाजा रहा
जर्द और सर्द
सभी मौसमो में साथ खडा रहा है
उनके होने के एहसास के साथ
लौटने का इंतजार में टिके हुये
और नही बदलता अपना पता वह
खत के आने के इंताजार में
शहर भी ना !!!
जर्द और सर्द
ReplyDeleteसभी मौसमो में साथ खडा रहा है
उनके होने के एहसास के साथ
लौटने का इंतजार में टिके हुये
और नही बदलता अपना पता वह
खत के आने के इंताजार में
शहर भी ना !!!
वाह वाह क्या बात है बहुत ही शानदार प्रस्तुति.....
क्या खूब लिखा है आपने
ReplyDeleteखत के आने के इंताजार में
ReplyDeleteशहर भी ना !!!
क्या बात हैं बहुत सुंदर.........
हर चीज़ अच्छी हो या बुरी शहरों की पहचान से जुड़ ही जाती है ..... बहुत बढ़िया
ReplyDeleteबहतु सुंदर, क्या कहने
ReplyDeleteसही है..शहर विस्तार लेता जाता है..नई पहचान भी बनाता चला जाता है...पर पुराने को मिटा नहीं पाता....जर्द ही सही..पर उसकी पुरानी पहचान अक्सर उसके नई पहचान के साथ-साथ किसी न किसी सहारे जिंदा रहती है....रह जाता है इंतजार...जो नए पुराने के बीच पसरा है..वो अंतहीन सा हो जाता है कई बार..
ReplyDeletewww.nawya.in
ReplyDeletebahut khoob...kaha.
ReplyDeleteसदियों लगते हैं शहर की पहचान बदलने में ... और कभी कभी मिनटों में बदल जाता है शहर ... लाजवाब कविता ...
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