सलवटो के बीच
फंसी रह गई थी कोई
खुशबू गुलाब सी
पर कई सफहों में
तलाशते हुये सांसों को
जुलाई का महीना दर्द बना
शहर और गाँव के बीच
कई छोटे छोटे शहर फंसे मिलते
इनके बीच डग भरती हुई गाडियाँ
फुर्ती में
फडफडाती हुई उनके ऊपर के फुल पत्तियाँ
जिसमें छोटा बडा शहर सवार होता
झुलते वर्तमान और भूत के बीच
कई यादें खिडकियों से झांकतें मिलते
बडी आसानी से धूल जाती है
कुछ यादें
गर्मी के तपतें दिनों के बीच
जब कोई अपना
अपना होने पर पट्टी बांध लेता हो
ढेरों रुलाता हो गर्मी में बहतें पसीनें की तरह
कल मिला
पत्थर तोडतें हुयें पाषाण की तरह
एक मौत ही नंगी रही हर जगह
बेंच दी थी अपनी आंखे
और कपडों को लगा दी थी आग उसनें
सुखा मिला जब भी मिला
जल गई थी शाखें
ना जानें क्यों और कब से
बस रही थी बस्तियों
हर दस कदम पर
कौन सा मंतर चल निकला था कि
पास वाले दूर वालों से
ज्यादा दूर थे
मिटती पगडंडियाँ
लौटनें का इंतजार करती रही
सावन भादों सब मौंसम
आते जाते
पर पगली
बदली की बौंराई आंखियों में
सबके सब ठिठकें पडें मिलतें !!
फंसी रह गई थी कोई
खुशबू गुलाब सी
पर कई सफहों में
तलाशते हुये सांसों को
जुलाई का महीना दर्द बना
शहर और गाँव के बीच
कई छोटे छोटे शहर फंसे मिलते
इनके बीच डग भरती हुई गाडियाँ
फुर्ती में
फडफडाती हुई उनके ऊपर के फुल पत्तियाँ
जिसमें छोटा बडा शहर सवार होता
झुलते वर्तमान और भूत के बीच
कई यादें खिडकियों से झांकतें मिलते
बडी आसानी से धूल जाती है
कुछ यादें
गर्मी के तपतें दिनों के बीच
जब कोई अपना
अपना होने पर पट्टी बांध लेता हो
ढेरों रुलाता हो गर्मी में बहतें पसीनें की तरह
कल मिला
पत्थर तोडतें हुयें पाषाण की तरह
एक मौत ही नंगी रही हर जगह
बेंच दी थी अपनी आंखे
और कपडों को लगा दी थी आग उसनें
सुखा मिला जब भी मिला
जल गई थी शाखें
ना जानें क्यों और कब से
बस रही थी बस्तियों
हर दस कदम पर
कौन सा मंतर चल निकला था कि
पास वाले दूर वालों से
ज्यादा दूर थे
मिटती पगडंडियाँ
लौटनें का इंतजार करती रही
सावन भादों सब मौंसम
आते जाते
पर पगली
बदली की बौंराई आंखियों में
सबके सब ठिठकें पडें मिलतें !!
बहुत सुंदर भावाव्यक्ति .....
ReplyDeleteखुबसूरत अभिवयक्ति....
ReplyDeletesundar rachna....
ReplyDeleteWah... Bahut badhia!!!
ReplyDeleteखूबसूरत रचना
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 15 -09 - 2011 को यहाँ भी है
ReplyDelete...नयी पुरानी हलचल में ... आईनों के शहर का वो शख्स था
खुबसूरत अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर, क्या बात है।
ReplyDeleteआपको पढना वाकई अच्छा लगता है।
कल मिला
पत्थर तोडतें हुयें पाषाण की तरह
एक मौत ही नंगी रही हर जगह
बेंच दी थी अपनी आंखे
और कपडों को लगा दी थी आग उसनें
सुखा मिला जब भी मिला
जल गई थी शाखें
बहुत ही मर्मस्पर्शी प्रस्तुति ...सादर शुभकामनायें !!!
ReplyDeleteभाव बहुत गहरे जो सीधे दिल से जा जुड़े। बहुत बहुत बधाई।
ReplyDeletegahre dard ko samaite bhaav poorn rachna.
ReplyDeleteभाव बहुत गहरे.....बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
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