तस्वीरों की सच खोजती दीवारें
बनावाटी सच पर मिट्टी की खुशबू
आसमान से बरसते अन्नाजों पर
राजनीति के दाल का काला और महंगा हो जाना
बढते भूखे-नंगो की गंगा-जमुनी प्रवाह में
जीवन को तलाशती आंखें
पिघलती सांसो मे शीशें का घुलना
बिलखते सपनों में गहराते अंधेरें
माँ की लाठी से गुम होती आवाज
बढते लोगों की तदाद में
अकेलेपन की बाढ से झुलसती अपनापन
और आनाथ स्पर्श से डर का खत्म हो जाना !!
बनावाटी सच पर मिट्टी की खुशबू
आसमान से बरसते अन्नाजों पर
राजनीति के दाल का काला और महंगा हो जाना
बढते भूखे-नंगो की गंगा-जमुनी प्रवाह में
जीवन को तलाशती आंखें
पिघलती सांसो मे शीशें का घुलना
बिलखते सपनों में गहराते अंधेरें
माँ की लाठी से गुम होती आवाज
बढते लोगों की तदाद में
अकेलेपन की बाढ से झुलसती अपनापन
और आनाथ स्पर्श से डर का खत्म हो जाना !!
अच्छे भाव, सुंदर रचना
ReplyDeleteपिघलती सांसो मे शीशें का घुलना
बिलखते सपनों में गहराते अंधेरें
माँ की लाठी से गुम होती आवाज
मर्मस्पर्शी कविता।
ReplyDeleteसादर
bahut hi acchi post dil ko chhune wali
ReplyDeleteअच्छी अभिव्यक्ति के लिए बधाई |
ReplyDeleteexcellent ...
ReplyDeleteसंवेदनशील रचना
ReplyDeleteमार्मिक और हृदयस्पर्शी ...
ReplyDeleteवाह... वाह .... क्या बात है .... बहोत खूब | धन्यवाद |
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