कहते है जनतंत्र
उसके बाद जन-गण-मन
लोग आजादी पाकर आजाद थे
विश्राम की मुद्रा में
थकान थी शायद इसलिये
जिन्हें जाना था, 'हे राम' कह
वह चले भी गये
देश अब भूखे हाथों में थी
और हम सब चीर निंद्रा में
रात जगे के बाद की नींद जो थी
माँ के कलेजे को गोली से
छलनी किया
पर सुराख दो ही बना
लहूलूहान हाथो से लिखा गया
आर और पार
महत्वकांक्षी किस्म की नसल थी
जिनको पाक़ चाहिये था
एक पवित्रग्रंथ में कानून लिखा गया
पर आहुति में कानून ही डालें गये
जली गरीबी
लोभी हाथो को ढँके गये
इंसाफ की आंखो को इसतरह की
अन्याय बढती नसलों को लीलती गई
विस्फोट हुआ चींटियों का
और चाट रहे है तलवे अबतक
कट रहे है भेड-बकरियों सी
निहायत जरुरी चीजे
जल रही है भूख
और बदहवास आंखे लाचार
चीन की दीवार बनी खडी रही
जनता और नीति के बीच के सम्बंध
और सताधीन हुये शहंशाहे-आलम
पाँव से लगकर बैठी रही कानून
पंडितो के पंडिताई पर ही डोलती रही कानून
और तबसे ताशे और ढोल पिटे जाते रहे
शायद नींद टुटे
रोते हुये सवाल
दफन होते शब्द
हर तरफ
मौत है भाषा की
गुंगे बहरो की परम्परा में
आज हर एक चीज एक तरफा है
क्षेत्रवादी संस्कार आज दानवी रुप में
विघटन का मंत्र पढा रहे है
भूखे हाथों की षणयंत्र है
जो फैला रहे है हर तरफ असमानतायें
खा रहे है मानवियता
क्या आज भी हम आजाद है
भ्रष्टाचार के दावन के बीच !!
रोते हुये सवाल
ReplyDeleteदफन होते शब्द
हर तरफ
मौत है भाषा की
गुंगे बहरो की परम्परा में
आज हर एक चीज एक तरफा है
क्षेत्रवादी संस्कार आज दानवी रुप में
विघटन के मंत्र पढा रहा है
aur sab kuch vightit hota ja raha hai
विस्फोट हुआ चींटियों का
ReplyDeleteऔर चाट रहे है तलवे अबतक
कट रहे है भेड-बकरियों सी
निहायत जरुरी चीजे
जल रही है भूख
और बदहवास आंखे लाचार
बस यही बचा है ..सार्थक प्रस्तुति
बंसतोत्सव की अनंत शुभकामनाऍं
ReplyDelete...प्रशंसनीय रचना
ReplyDeleteआपको वसंत पंचमी की ढेरों शुभकामनाएं!
सार्थक
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