सुबह से शाम हुई
कलरव में
देखते हुये
तुझें
कई शाम
कंधो पर
लेकर बैठी है जो
आसमान
ओंस की मानिंद
काटी है यादें
कोई सीप
तुझ सा ना मिला
कि बन जायें
मोती
लहरों की
साजिश में
लौट जाता है वक्त
किनारों से
ठोकर खाकर
किनारे देखती रही हैं तुम्हें
सुबह और शाम में
उगते और डूबतें !!
कलरव में
देखते हुये
तुझें
कई शाम
कंधो पर
लेकर बैठी है जो
आसमान
ओंस की मानिंद
काटी है यादें
कोई सीप
तुझ सा ना मिला
कि बन जायें
मोती
लहरों की
साजिश में
लौट जाता है वक्त
किनारों से
ठोकर खाकर
किनारे देखती रही हैं तुम्हें
सुबह और शाम में
उगते और डूबतें !!
कई शाम
ReplyDeleteकंधो पर
लेकर बैठी है जो
आसमान
ओंस की मानिंद
काटी है यादें
कोई सीप
तुझ सा ना मिला
कि बन जायें
मोती ... bahut khoob
waah bahut khub
ReplyDeleteवाह क्या बात है बहुत खूब लिखा है आपने !!!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना ...हार्दिक बधाई स्वीकारे ..:)
ReplyDeleteलहरों की
ReplyDeleteसाजिश में
लौट जाता है वक्त
किनारों से
ठोकर खाकर
बहुत सुंदर...
बहुत सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति|
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें|
कोई सीप
ReplyDeleteतुझ सा ना मिला
कि बन जायें
मोती
बहुत बड़ी बात कुछ शब्दों में... वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ...
कोई सीप
ReplyDeleteतुझ सा ना मिला
कि बन जायें
मोती
वाह वाह क्या बात है.....बधाई...