उडते पंछियो से
टोह मिलती रही
संदेश की चिठ्ठियाँ
कई बार लिखी
अक्षरों का सँवारना नही हुआ
घुलते रहे अश्को में
परिंदों के परो से आती खुश्बू
तेरे देश का संदेश देती रही
शाम ढले
समंदर की सुरमई एहसास में
गिनती में बिखरते रहे चाँद तारे
सजती रही रातें पर
बदहवास आंखो में
जंगली हवायें टीस पैदा करती रही
तेरे शहर का दूर होना तब
आंखो में किरचियाँ घोलने लगती
पर घोंसलो में सोये पंछियों के
चेहरे की सुकून
चिराग जला जाती है ढेहरी पर !!
टोह मिलती रही
संदेश की चिठ्ठियाँ
कई बार लिखी
अक्षरों का सँवारना नही हुआ
घुलते रहे अश्को में
परिंदों के परो से आती खुश्बू
तेरे देश का संदेश देती रही
शाम ढले
समंदर की सुरमई एहसास में
गिनती में बिखरते रहे चाँद तारे
सजती रही रातें पर
बदहवास आंखो में
जंगली हवायें टीस पैदा करती रही
तेरे शहर का दूर होना तब
आंखो में किरचियाँ घोलने लगती
पर घोंसलो में सोये पंछियों के
चेहरे की सुकून
चिराग जला जाती है ढेहरी पर !!
पर घोंसलो में सोये पंक्षियों के
ReplyDeleteचेहरे की सुकून
चिराग जला जाती है ढेहरी पर !!बहुत ही सुन्दर और सार्थक अभिवयक्ति....
पर घोंसलो में सोये पंक्षियों के
ReplyDeleteचेहरे की सुकून
चिराग जला जाती है ढेहरी पर !!
very well said ....welcome to on my blog post
lajwab shabd samayojan .....wah!!!!please visit my blog
ReplyDeleteवाह जी,
ReplyDeleteबहुत सुंदर
क्या कहने
संध्या जी , अहसास और कविता दोनों खूबसूरत हैं ...थोड़ी शब्दों में एडिटिंग की जरुरत है ..पक्षियों लिखिए या पंछियों लिखिए ...बदहवाश न होकर बदहवास शब्द होता है ...माफ़ कीजियेगा ...परफेक्शन के लिए सुझाव दिया है ...
ReplyDeleteआपकी सुझाव सिर माथे पर ...शुक्रिया शारदा जी !!
ReplyDelete