अंतहीन इंतजार में
सांस लेता हुआ
पिंजडे में बंद पंक्षी
छूट चुके लम्हों का
गिरवी पडा है अब
अपमानित जिंदगी जीता हुआ
गये पहर के बुझे चिराग सा
पानीहारिन की फुटी मटकी से
जगी प्यास सी
रही जिंदगी उसकी
शब्दों की अन्नत पीडा पर
बरसते रहे बर्फ के गोले
और तपिश गिरती रही
कविता की जिस्म पर
उनसे बंधी डोर बडी रेश्मि थी
जो आंखो को
आठ-आठ आंसू देते खुशी के
अंतस से आती आवाज में
नूर पेशानी की बडी ही रुहानी थी
शीतल हवा रही एक एक अक्षर
पर
रिश्तो और जिस्म पर
यकीन न था शब्दों को
इसतरह वह दूर रही दोनों से
और साकार होना था उसे
काठ की मुर्तियों में
धूप से बनी परछाई वाली
छाँव थी अब
जो करीब उतनी ही थी जितनी की दूर
और साथ साथ !!
सांस लेता हुआ
पिंजडे में बंद पंक्षी
छूट चुके लम्हों का
गिरवी पडा है अब
अपमानित जिंदगी जीता हुआ
गये पहर के बुझे चिराग सा
पानीहारिन की फुटी मटकी से
जगी प्यास सी
रही जिंदगी उसकी
शब्दों की अन्नत पीडा पर
बरसते रहे बर्फ के गोले
और तपिश गिरती रही
कविता की जिस्म पर
उनसे बंधी डोर बडी रेश्मि थी
जो आंखो को
आठ-आठ आंसू देते खुशी के
अंतस से आती आवाज में
नूर पेशानी की बडी ही रुहानी थी
शीतल हवा रही एक एक अक्षर
पर
रिश्तो और जिस्म पर
यकीन न था शब्दों को
इसतरह वह दूर रही दोनों से
और साकार होना था उसे
काठ की मुर्तियों में
धूप से बनी परछाई वाली
छाँव थी अब
जो करीब उतनी ही थी जितनी की दूर
और साथ साथ !!
शब्दो के अन्नत पीडा पर
ReplyDeleteबरसते रहे बर्फ के गोले
पर तपिश गिरती रही
कविता के जिस्म पर
वाह ..खूबसूरत बिम्ब से सजी सुन्दर रचना
बेहद खूबसूरत ख्याल्।
ReplyDeleteसुंदर. अतिसुन्दर रचना.
ReplyDeleteआभार.
बहुत ही खुबसूरत ख्यालो से रची रचना......
ReplyDeleteसुन्दर एहसास हैं ...
ReplyDeleteबहुत उम्दा!!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया और उम्दा प्रस्तुति
ReplyDeleteGyan Darpan
Matrimonial Site
बेहद सुंदर शब्दों से आप ने हर भाव को जिया है .....बहुत सुंदर अभियक्ति
ReplyDeleteBahut achchhi prabhavshali abhivyakti.... Sandhya ji......
ReplyDeletebas shabd hi shabd.........bahut khub
ReplyDeleteसुन्दर.... सार्थक रचना...
ReplyDeleteसादर...