आंखो में सिहरता समन्दर
गोद में लहरे खौफ खाये बैठी रही
आन्ने दो आन्ने की बात नही थी
अब हजार में भी नही भरता था पेट
मचान वही बनता जिसके नीचे लहलहाते खेत होते
संतोष अमीरी में उगे तो मुश्किल क्या
पर गरीबी में
अंगीठी की आग को जलते छोड दे तो
राख होने तक जलेगी जाहिर है
शहर था जिसके करवट में समन्दर सोता हुआ
समय रेलगाडी सा पटरियो पर चलता
सुबह और रात के बीच
सैलाब सी भीड में जुनून सवार
जेबे टटोलती हुई हाथे
पर खाली
कश लेता हुआ वक्त
जिसे सेहत की कोई फिक्र ना थी
कदभर पर आती स्टेशनें और
सांस सिटी सी आवाज करती हुई
देखकर लोग सावाधान होते जाते
कतार में
लम्बी होती जिंदगी में रफ्तार धीमी
ऊब और घुटन से रास्ते नापे जाते
शहर की खासियत थी कि
तस्वीर सोने की फ्रेम में जडी जाती
पर चित्र कब और किस तरह पिघलकर टपक जाता
दीवारों को कानो कान पता ना चलता
चित्रकार तलाश करता हुआ दिखता
पर लोग उसे अव्यक्त करार कर देते
एहसासों का समन्दर वही डुबता नजर आया
जहाँ सिरहाने पर सुरज उगता था
चाँदनी की सफेद आंचल पर तारे सुकून से सोते थे रातो में
शहर था जहाँ सबकुछ बडा हो जाता
एक के बाद एक
नींद मचान पर सोयी गौरैया थी
जिसकी सुबह जल्दी होती
और ख्वाब छोटी !!
एहसासो का समन्दर वही डुबता नजर आया
ReplyDeleteजहाँ सिरहाने पर सुरज उगता था
चाँदनी की सफेद आंचल पर तारे सुकून से सोते थे रातो में
शहर था जहाँ सबकुछ बडा हो जाता एक के बाद एक
गहन अभिव्यक्ति ..
मचान वही बनती जिसके नीचे लहलहाते खेत होते
ReplyDeleteसंतोष अमीरी में उगे तो मुश्किल क्या
पर गरीबी में
अंगीठी के आग को जलते छोड दे तो
राख होने तक जलेगा जाहिर है ... एक गहरी निःश्वास छोड़ता सत्य
bahut hi goodh vicharabhivyakti...
ReplyDeleteशानदार प्रस्तुति
ReplyDeleteGyan Darpan
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भाषा की अशुद्धी ने निराश किया कहते कहते भी बात कही न गयी
ReplyDeleteसशक्त और प्रभावशाली रचना.....
ReplyDeleteएहसासो का समन्दर वही डुबता नजर आया
ReplyDeleteजहाँ सिरहाने पर सुरज उगता था
प्रभावशाली बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ,बधाई
वाह बहुत ही बेहतरीन रचना । शब्दों का शिल्प अदभुत है
ReplyDeleteनींद मचान पर सोयी गौरैया थी
ReplyDeleteजिसकी सुबह जल्दी होती
और ख्वाब छोटी !!
- क्या बात है वाह बहुत सही लिखा है संध्या जी आप ने......दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती