गमों से पार चले
ए हवा
चल कही और चले
उल्झी सांसो की
गुंथियों की जाल से
पार चले
ए हवा
चल कही और चले
बंजर भुमि की कोख में
लगी आग से
कही पार चले
ए हवा
चल कही और चले
निकल चली है
कई रस्मो-रवायते ऐसी की
शुल जिगर के पार चले
ए हवा
चल कही और चले
मुद्दतो से वे छींटते रहे है
बारुद यहाँ वहाँ
फटने से पार चले
ए हवा
चल कही और चले
हमने भी इक बनाई है
रौशन चमन जहाँ में
ए हवा
चल उसी के आस-पास चले !!
ए हवा
चल कही और चले
उल्झी सांसो की
गुंथियों की जाल से
पार चले
ए हवा
चल कही और चले
बंजर भुमि की कोख में
लगी आग से
कही पार चले
ए हवा
चल कही और चले
निकल चली है
कई रस्मो-रवायते ऐसी की
शुल जिगर के पार चले
ए हवा
चल कही और चले
मुद्दतो से वे छींटते रहे है
बारुद यहाँ वहाँ
फटने से पार चले
ए हवा
चल कही और चले
हमने भी इक बनाई है
रौशन चमन जहाँ में
ए हवा
चल उसी के आस-पास चले !!
हमें स्वयं बनानी है वह रौशन दुनिया...
ReplyDeleteपावन भाव!
सुंदर भावों का सयोजन बहुत ही सुन्दर कविता पढ़कर आनन्द आ गया. आभार.
ReplyDeleteए मेरे दिल कहीं और चल ग़म की दुनिया से दिल भर गया.... समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
ReplyDeletehttp://aapki-pasand.blogspot.com/2011/12/blog-post_13.html
sundar bhaav sundar prastuti.
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति.....
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसुन्दर भावों को लिए बढ़िया अभिव्यक्ति
ReplyDeleteGyan Darpan
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