तंत्रिका तंत्र और ख्वाब

हाथ नींद के अंदर से
मानो खिंच लाया हो सपना
और बांट रहा है उसे
जरुरतमंदो में

एक भोर आंखो से होकर गुजरता हुआ 
ग्राह्य तंतुओ से अलग एक
आसमान से दूर डुबता समंदर के बीचोबीच
संधिस्थल सा मै और तुम
थोडा खाली जगह है उन्हे अभी भरना बाकि है

उगती घासो पर सम्वेदनाये अभी ग्रह्य है
रात को सियार नही खाये तो
नींद और मुर्गियाँ बची रहेंगी और
अंडो को सोने के भाव बेचेंगे तब

सम्वेदी तंतुओ को तलाश है
तुम्हारे दिन जैसे अक्षरो का
जिनसे ट्पकते हुये दर्द
मेरुदण्ड को खाये जा रही है
बचाना सम्भव हो तो
मस्तिक के सुरक्षित जगह को बचाओ

उसने सिखायी थी
नाक आंख और कान के संरचना तंत्र को
पर बाकी लोगो को यह नही पता था कि
प्यार की कोई संरचना तंत्र नही होती

जाल थी दुनिया सभी उल्झे हुये थे
तंत्रिका तंत्र की तंतुओ  की तरह
पर अभी भी कुछ लोग सपनो के तलाश में थे
जबकि फ्रायड ने यह बता दिया था कि
जिस्म के गांठो में मन भी उल्झा हुआ है
पर यह क्या हो रहा है !!

9 comments:

  1. जाल थी दुनिया सभी उल्झे हुये थे
    तंत्रिका तंत्र की तंतुओ की तरह
    पर अभी भी कुछ लोग सपनो के तलाश में थे

    उलझी उलझी सी ज़िंदगी की गांठें खोलने का प्रयास करती सुन्दर रचना

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  2. फ्रायड फादर जरूर था ,पर अब तो पुराना हो गया है
    बेटा बाप से आगे निकलता है,नया जमाना जो हो गया है.

    आपकी पोस्ट पर संगीता जी की हलचल से चलकर आया हूँ जी.
    पढकर अच्छी लगी.

    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.
    आपका पचास वां फालोअर बन रहा हूँ.
    मेरी फालोअर आप बनेंगीं तो मुझे खुशी होगी.

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  3. बहुत ही गहन प्रस्तुति ..!
    आभार !
    मेरे ब्लॉग पे आपका स्वागत है ..!

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  4. हाथ नींद के अंदर से
    मानो खिंच लाया हो सपना
    और बांट रहा है उसे
    जरुरतमंदो में....

    सुन्दर ख़याल.... सुन्दर रचना...
    सादर...

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  5. उसने सिखायी थी
    नाक आंख और कान के संरचना तंत्र को
    पर बाकी लोगो को यह नही पता था कि
    प्यार की कोई संरचना तंत्र नही होती

    ....गहन चिंतन से ओतप्रोत सुंदर अभिव्यक्ति ....

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  6. जाल थी दुनिया सभी उल्झे हुये थे
    तंत्रिका तंत्र की तंतुओ की तरह
    पर अभी भी कुछ लोग सपनो के तलाश में थे
    जबकि फ्रायड ने यह बता दिया था कि
    जिस्म के गांठो में मन भी उल्झा हुआ है
    पर यह क्या हो रहा है !!
    ..sach jab tak man bas mein nahi tab tak sab vyarth hai...
    tantrika tantra ka bahut sundar saarthak chitran.. bahut badiya chintanprad rachna,,,

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  7. उसने सिखायी थी
    नाक आंख और कान के संरचना तंत्र को
    पर बाकी लोगो को यह नही पता था कि
    प्यार की कोई संरचना तंत्र नही होती...बहुत कुछ कहती रचना

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  8. sangeeta ji ke nayi purani halchal aap tak pahunchne ka madhyam bani..pahli baar aana hua..badi he goodh rachna likhi hai aapne..shandar prayog...aapk 53 no follewer ban raha hooon agar aap bhi mera blog join karengi to mujhe hardi prasannath hogi...sadar

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