ठहर तो सही
सफर लम्बी है
धूप बेसुमार
चिलचिलाती छाँव से
थकान प्यासी है
अगले दो कदम पर बादल मिलेंगे
सूना है वे
ठंडी हवायें ढोते हैं पानी नही
चाहत है उन्हे भी देख लूँ जरा
प्याउ है उधर
जा थोडा पानी पी ले
सफर हैं तो प्यास लगेगी ना
जल्दी जाने की चाहत मत रख
वरना पैर
कंटीले वक्त से
जख्मी हो जायेंगे
आखिर चाहत अंधी और बहरी
जो ठहरी
देखा..... ना
कल ही तो
हिमालय से आनेवाली ब्यार
लहूलुहान पडी मिली थी
छूट चुकी चौराहें पर
सफर मे कई आंखो का होना
जरूरी सा लगता है अब
है ना....
सफर लम्बी है
धूप बेसुमार
चिलचिलाती छाँव से
थकान प्यासी है
अगले दो कदम पर बादल मिलेंगे
सूना है वे
ठंडी हवायें ढोते हैं पानी नही
चाहत है उन्हे भी देख लूँ जरा
प्याउ है उधर
जा थोडा पानी पी ले
सफर हैं तो प्यास लगेगी ना
जल्दी जाने की चाहत मत रख
वरना पैर
कंटीले वक्त से
जख्मी हो जायेंगे
आखिर चाहत अंधी और बहरी
जो ठहरी
देखा..... ना
कल ही तो
हिमालय से आनेवाली ब्यार
लहूलुहान पडी मिली थी
छूट चुकी चौराहें पर
सफर मे कई आंखो का होना
जरूरी सा लगता है अब
है ना....
Fantastic expressions!!!!
ReplyDeleteRegards.
जल्दी जाने की चाहत मत रख
ReplyDeleteवरना पैर
कंटीले वक्त से
जख्मी हो जायेंगे
आखिर चाहत अंधी और बहरी
जो ठहरी
शायद आपका ब्लॉग पहली बार देखा , भावों की सुंदर अभिव्यक्ति देखने को मिली , बधाई
जल्दी जाने की चाहत मत रख
ReplyDeleteवरना पैर
कंटीले वक्त से
जख्मी हो जायेंगे
आखिर चाहत अंधी और बहरी
जो ठहरी
bahut hi khubsurat likha hai.....
aadar sahit
Behtreen Abhivyakti!!!!Behtreen Abhivyakti!!!!
ReplyDeleteबहुत ही बढिया पोस्ट है
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर एवं प्रेरक रचना।
ReplyDelete------
चोंच में आकाश समा लेने की जिद..
इब्ने सफी के मायाजाल से कोई नहीं बच पाया।