इंच इंच करके
मुस्कान खोता गया
समंदर में
सूरज रोज कुछ
और ज्यादा भारी होता गया
सुबह के कंधो पर
साहिल काटता रहा उठती लहरों को
इसतरह समंदर गुमसुम रहा
कई कई दिनो तक
उसने समेट रखी थी आंखो की नमी
आंचल में
रात जब भी अकेली हुई
ओढती रही और भींगती रही
कुछ इसतरह
पिघलती रही हिमखंड की
वह बदली कि
आसमान धडकनो में सिमटा रहा
टूटते तारो के संग बिखरता रहा
समंदर स्याही की रहा
लिखने के पहले वह डुबती गई
लकीरो में इंच इंच !
मुस्कान खोता गया
समंदर में
सूरज रोज कुछ
और ज्यादा भारी होता गया
सुबह के कंधो पर
साहिल काटता रहा उठती लहरों को
इसतरह समंदर गुमसुम रहा
कई कई दिनो तक
उसने समेट रखी थी आंखो की नमी
आंचल में
रात जब भी अकेली हुई
ओढती रही और भींगती रही
कुछ इसतरह
पिघलती रही हिमखंड की
वह बदली कि
आसमान धडकनो में सिमटा रहा
टूटते तारो के संग बिखरता रहा
समंदर स्याही की रहा
लिखने के पहले वह डुबती गई
लकीरो में इंच इंच !
bahut sundr abhivyakti ......
ReplyDeleteबहुत खूब कहा है आपने ।
ReplyDeleteसमंदर स्याही की रहा
ReplyDeleteलिखने के पहले वह डुबती गई
लकीरो में इंच इंच
अति सुन्दर !
बेहतरीन अंदाज़..... सुन्दर
ReplyDeleteअभिव्यक्ति.....
बेहतरीन अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteBahut sundar....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना भावयुक्त
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