आह की तीर से
धायल पृथ्वी के लब पर
जब एक मुस्कान रिसेगी
तब एक कविता मुकम्मल बनेगी
दर्द के नीर में
आस की प्यास से
जब एक नाव चलेगी
तब एक कविता मुकम्मल बनेगी
बंद दिलो के दरवाजो पर
राग और विराग से कोई दस्तक
नई धुन छेडेगी
तब एक कविता मुकम्मल बनेगी
नष्ट होते जंगलो में
ठूंठ दरख्तों पर
चिडियों के चहकने से
जब कोई सूरज निकलेगा
तब एक कविता मुकम्मल बनेगी
सूनी आंखो की
सूख गई पुतलियों में
जब अश्क उम्मीद बनकर तैरेंगें
तब एक कविता मुकम्मल बनेगी !!
धायल पृथ्वी के लब पर
जब एक मुस्कान रिसेगी
तब एक कविता मुकम्मल बनेगी
दर्द के नीर में
आस की प्यास से
जब एक नाव चलेगी
तब एक कविता मुकम्मल बनेगी
बंद दिलो के दरवाजो पर
राग और विराग से कोई दस्तक
नई धुन छेडेगी
तब एक कविता मुकम्मल बनेगी
नष्ट होते जंगलो में
ठूंठ दरख्तों पर
चिडियों के चहकने से
जब कोई सूरज निकलेगा
तब एक कविता मुकम्मल बनेगी
सूनी आंखो की
सूख गई पुतलियों में
जब अश्क उम्मीद बनकर तैरेंगें
तब एक कविता मुकम्मल बनेगी !!
कमाल की शायरी है, लफ्ज़-बा-लफ्ज़ बेहतरीन!
ReplyDeletebehad khoobsoorat prastuti.
ReplyDeleteबहुत खूब ...
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteशानदार प्रस्तुति
Gyan Darpan
..
वाह ...बहुत बढि़या।
ReplyDeleteवाह, बहुत सुंदर प्रस्तुति । मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है ।..
ReplyDeleteजब भाव भरी अँगुली,
ReplyDeleteप्यार भरे ओंठों को,
सरगम बन छेड़ेंगी,
तब एक कविता मुकम्मल बनेगी |
.....बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति |
हार्दिक बधाई व शुभकामना |