मुमकीन हो सफ़र

बहुत सुंदर है किताब फूलो की
बदल दी है हिसाब वसूलो की

मुमकिन हो हर सवाल मासूमों की
बात गुलाब की हो ना कि कांटो की

रौशन हो शहर आओ बात करे फरीस्तो की
आ जाओ कि आसान हो दौर मुश्किलों की

छु लो कि मुकम्मल हो आसान हो सफर रातों का 
गुफ्तगू में रही वो कह दो कोई नज्म होंठों की

अनकही अनछुई और अनदेखी रही सब की
अब न रहो चुप कि कह दो हर बात रकीबों की   !!

5 comments:

  1. बहुत अच्छी और लाजबाब है आपकी यह प्रस्तुति.
    शानदार लेखन के लिए आभार,संध्या जी.

    मेरे ब्लॉग पर आईएगा.

    ReplyDelete
  2. बेहतरीन अभिवयक्ति.....

    ReplyDelete
  3. सुन्दर शब्दों में अच्छी रचना.

    ReplyDelete
  4. बेहतरीन रचना।
    गहरी अभिव्‍यक्ति।

    ReplyDelete
  5. yadi aap mere dwara sampadit kavy sangrah mein shamil hona chahti hain to sampark karen
    rasprabha@gmail.com

    ReplyDelete