कई आंखे निकल आयी थी
तस्वीरों में
पर कमरा भरा था अंधेरो से
जुगनूये माँ बन गयी थी आंखो की
घुप अंधेरा गहरा रहा
पर आशा टिमटिमाती रही
बंद कमरो में और
आत्मा अंधेरो मे
प्रदिप्त थी
ऊँमकार स्वरूप !!
तस्वीरों में
पर कमरा भरा था अंधेरो से
जुगनूये माँ बन गयी थी आंखो की
घुप अंधेरा गहरा रहा
पर आशा टिमटिमाती रही
बंद कमरो में और
आत्मा अंधेरो मे
प्रदिप्त थी
ऊँमकार स्वरूप !!
आपकी इस कविता से ... मन प्रसन्न हो गया
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteबेहतरीन।
ReplyDeleteबहुत खूब !!
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