सरकार की आडी तिरछी नजरें
जला रही हैं बस्तियाँ
खेतों की मेहनत खाक होती रही है
गोदामों में
इस पर जश्न रही है गिध्दों की
पगडंडियाँ शहर बनती जा रही है
हर तरफ फैला हुआ है दूर दूर तक
जंगलो के ठीक बीचो-बीच
सूखी और दरकी दुनिया बनी हुई है
बेबस और लाचार मौन की
विवशता पर स्याह रातें फैली हुई है
गुजरती शाम घने अंधेरे जंगलो से
सूरज भी कही दूर डूबता रहा है
पत्थरों के साये में मासूम हिरणें
रस्सियों के बीच सांसे ले रही हैं
अय हवा बारिश कर दे पत्तियों की
जंगलो के बीच तपिश पसरी पडी है
और दरकी हुई दुनिया को थोडी कम कर दे !!
जला रही हैं बस्तियाँ
खेतों की मेहनत खाक होती रही है
गोदामों में
इस पर जश्न रही है गिध्दों की
पगडंडियाँ शहर बनती जा रही है
हर तरफ फैला हुआ है दूर दूर तक
जंगलो के ठीक बीचो-बीच
सूखी और दरकी दुनिया बनी हुई है
बेबस और लाचार मौन की
विवशता पर स्याह रातें फैली हुई है
गुजरती शाम घने अंधेरे जंगलो से
सूरज भी कही दूर डूबता रहा है
पत्थरों के साये में मासूम हिरणें
रस्सियों के बीच सांसे ले रही हैं
अय हवा बारिश कर दे पत्तियों की
जंगलो के बीच तपिश पसरी पडी है
और दरकी हुई दुनिया को थोडी कम कर दे !!
गुजरती शाम घने अंधेरे जंगलो से
ReplyDeleteसूरज भी कही दूर डुबता रहा है
पत्थरों के बीच मासूम हिरणें
रस्सियों के बीच सांसे ले रही है ... कुछ बेचैन सी स्थिति
सुन्दर अभिव्यक्ति,भावपूर्ण.
ReplyDeleteगुजरती शाम घने अंधेरे जंगलो से
ReplyDeleteसूरज भी कही दूर डुबता रहा है
पत्थरों के बीच मासूम हिरणें
रस्सियों के बीच सांसे ले रही है ... कशमकश में उलझा मन.......
बहुत सुंदर भाव संजोये है और उनकी अभिव्यक्ति भी बहुत सुंदर .......
ReplyDeleteबेहद उम्दा.
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