अय हवा बारिश कर दे पत्तियों की

सरकार की आडी तिरछी नजरें
जला रही हैं बस्तियाँ
खेतों की मेहनत खाक होती रही है
गोदामों में
इस पर जश्न रही है गिध्दों की  
पगडंडियाँ शहर बनती जा रही है

हर तरफ फैला हुआ है दूर दूर तक
जंगलो के ठीक बीचो-बीच
सूखी और दरकी दुनिया बनी हुई है
बेबस और लाचार मौन की
विवशता पर स्याह रातें फैली हुई है 
 
गुजरती शाम घने अंधेरे जंगलो से 
सूरज भी कही दूर डूबता रहा है
पत्थरों के साये में मासूम हिरणें
रस्सियों के बीच सांसे ले रही हैं 

अय हवा बारिश कर दे पत्तियों की
जंगलो के बीच तपिश पसरी पडी  है
और दरकी हुई दुनिया को थोडी कम कर दे !!

5 comments:

  1. गुजरती शाम घने अंधेरे जंगलो से
    सूरज भी कही दूर डुबता रहा है
    पत्थरों के बीच मासूम हिरणें
    रस्सियों के बीच सांसे ले रही है ... कुछ बेचैन सी स्थिति

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  2. सुन्दर अभिव्यक्ति,भावपूर्ण.

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  3. गुजरती शाम घने अंधेरे जंगलो से
    सूरज भी कही दूर डुबता रहा है
    पत्थरों के बीच मासूम हिरणें
    रस्सियों के बीच सांसे ले रही है ... कशमकश में उलझा मन.......

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  4. बहुत सुंदर भाव संजोये है और उनकी अभिव्यक्ति भी बहुत सुंदर .......

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